नई दिल्ली। इलेक्ट्रोल बॉन्ड से राजनीतिक दलों को भर-भरकर चंदे मिले। भारतीय स्टेट बैंक द्वारा सार्वजिनक की गई जानकारी में इसका खुलासा हुआ। अब सूचना के अधिकार के तहत जो जानकारी मिली है उससे यह पता चला है कि इस पूरी प्रक्रिया में एसबीआई को भी लाभ हुआ है। 2018 से 2024 तक चुनावी बॉन्ड की बिक्री करीब 30 चरणों में संपन्न हुए। प्रत्येक चरण के लिए लेनदेन और बैंक शुल्क लगाए गए थे। एसबीआई ने शुरुआत से ही वित्त मंत्रालय को कमीशन के रूप में कुल 10.68 करोड़ रुपये का बिल थमाया था।
इस योजना के चौथे चरण के लिए सबसे कम 1.82 लाख रुपये का कमीशन मिला था। इस दौरान सिर्फ 82 बॉन्ड कैश कराए गए थे। नौवें चरण में सबसे अधिक 1.25 करोड़ रुपये था कमीशन मिला था। आपको बता दें कि 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले 4,607 बॉन्ड बेचे गए थे।
आपको बता दें कि स्टेट बैंक को बकाया भुगतान के लिए नियमित रूप से मंत्रालय को रिमाइंडर भेजना पड़ता था। तत्कालीन एसबीआई अध्यक्ष रजनीश कुमार ने 13 फरवरी 2019 को तत्कालीन आर्थिक मामलों के सचिव एससी गर्ग को एक पत्र भी लिखा था। तब तक सात चरणों के लिए एसबीआई का बकाया बढ़कर 77.43 लाख रुपये हो चुका था।
इस चिट्ठी में एसबीआई अध्यक्ष ने यह भी लिखा था कि कमीशन की गणना कैसे की जा रही है। उन्होंने लिखा, “बैंक द्वारा दर्ज कमीशन का दावा बहुत उचित माना जाता है। यह दावा सरकारी कमीशन दरों के अनुरूप है। फिजिकल बॉन्ड के लिए प्रति लेनदेन 50 रुपये और ऑनलाइन लेनदेन के लिए 12 रुपये तय हैं। भुगतान की बात करें तो प्रति 100 रुपये पर 5.5 पैसे का कमीशन काटा जाता है।”
एसबीआई ने तर्क दिया था कि कमीशन पर 18% जीएसटी भी उसे भुगतान किया जाना चाहिए। बैंक ने जीएसटी पर 2% टीडीएस लगाने के लिए मंत्रालय को दोषी ठहराया था। 11 जून 2020 को एक ईमेल में एसबीआई ने 6.95 लाख रुपये का रिफंड मांगा था। यह राशि बॉन्ड के लिए भुगतान किए गए 3.12 करोड़ रुपये के कमीशन से जीएसटी पर टीडीएस के रूप में काटा गई थी।
बैंक ने चुनावी बॉन्ड की गलत छपाई को लेकर वित्त मंत्रालय को सचेत किया था। 23 मार्च 2021 को लिखे एक पत्र में एसबीआई ने बताया कि 94 चुनावी बॉन्ड ऐसे प्राप्त हुए हैं, जो गलत तरीके से छापे गए हैं। सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए अनुसार छिपा हुआ सीरियल नंबर केवल पराबैंगनी (यूवी) प्रकाश पड़ने पर ही दिखना चाहिए था।