मंदसौर । शहर के मध्य में स्थित प्राचीन श्री तलाई वाले बालाजी मंदिर के भक्त देश के साथ ही विदेशों में भी हैं। मंदिर के प्रति श्रद्धा का ही नतीजा है कि यहां हनुमानजी को चोला चढाने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है। मंदसौर के दवा व्यवसायी मिलिंद जिल्हेवार ने हनुमान जयंती पर चोला चढ़ाने के लिए 7 अगस्त 2009 में बुकिंग करवाई थी। 13 साल बाद शनिवार को उन्हें हनुमानजी को चोला चढ़ाने का पुण्यलाभ मिलेगा। वे सुबह परिवार व स्वजन सहित मंदिर पहुंचेगे और हनुमानजी की प्राचीन प्रतिमा को चोला चढाएंगे।
हनुमानजी को चोला चढ़ाने के लिए ज्यादातर भक्तों की इच्छा रहती है कि उन्हें मंगलवार और शनिवार का दिन मिल जाए। लेकिन तलाई वाले बालाजी मंदिर में यदि मंगलवार को चोला चढ़ाना है तो 23 साल का
इंतजार करना होगा। कारण है 23 नंवबर 2045 तक के सभी मंगलवार की बुकिंग हो चुकी है। । इतना ही नहीं शनिवार को भी चोला चढ़ाने के लिए अगस्त 2045 तक का इंतजार करना पड़ेगा। सोमवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार व रविवार को चोला चढ़ाने की इच्छा रखने वालों को भी मार्च 2031 तक तो रुकना ही पड़ेगा। फिलहाल 1104 मंगलवार, 1188 शनिवार और अन्य 2421 दिनों की बुकिंग मंदिर समिति के पास दर्ज है।
2019 से बंद है बुकिंग
मंदिर समिति ने वर्ष 2019 से मंगलवार को चोला चढ़ाने की बुकिंग बंद कर दी है। चूंकि 2045 तक के लिए कोई भी मंगलवार रिक्त नहीं है। देश-विदेश के भक्त इन दिनों की बुकिंग कर चुके हैं। इसलिए समिति अगले कुछ वर्षों बाद ही बुकिंग दोबारा शुरू करेगी।
भक्त को ही रखना होता है याद कब उसे चोला चढ़ाने जाना है
मंदिर समिति के अनुसार बुकिंग के समय ही चोला चढ़ाने की मंशा रखने वाले भक्त दान राशि दे देते हैं। इसके लिए कोई शुल्क निर्धारित नहीं है, भक्त अपनी श्रद्धानुसार राशि मंदिर समिति के पास जमा करवा देते हैं। उससे समिति सदस्य सामग्री लाते हैं। मंदिर में लगे बोर्ड पर चोला चढ़ाने के लाभार्थी का नाम लिख दिया जाता है। तय दिन वह आए या न आए उसके नाम से चोला भगवान को चढ़ा दिया जाता है।
ओबामा के लिए दो बार हो चुका है हवन
अमेरिका में बराक ओबामा जब दोनों बार राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बने थे तब भी उनके भारतवंशी समर्थक ने अपने मंदसौर निवासी रिश्तेदार की मदद से श्री तलाई वाले बालाजी में हवन कराए थे।
इसके अलावा परमार्थ निकेतन ऋषिकेश के श्री रामानुजजी महाराज भी यहां के भक्त हैं और हर साल हनुमान जन्मोत्सव पर वे मंदिर में ही रहते हैं।
श्री तलाई वाले मंदिर ट्रस्ट अध्यक्ष धीरेंद्र त्रिवेदी ने बताया कि मूर्ति लगभग 700 वर्ष पुरानी है। प्रारंभ में वटवृक्ष के नीचे स्थापित थी। उस समय यह स्थान शहर से दूर सूबा साहब (कलेक्टर) बंगला कहलाता है।
आज भी इसे पुरानी सुबात कहा जाता है।
ऐसे मंदिर का नाम पड़ा
मंदिर के पास एक तलाई थी। इसके कारण मंदिर का नाम तलाई वाले बालाजी हो गया है। बाद में यहां मंदिर का निर्माण हुआ है और अभी इसका नवनिर्माण चल रहा है। तलाई की जगह नगर पालिका ने तरणताल बना दिया है। किंवदंती है कि मूर्ति की स्थापना सिद्ध परमहंस संत द्वारा की गई थी। बहुत समय तक यहां बनी धर्मशाला, तलाई एवं मंदिर साधु-संतों एवं जमातों का विश्राम एवं आराधना स्थल रहा है।