मॉस्को: रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अकसर अमेरिका समेत पश्चिमी दुनिया के देशों को धमकी देते हैं। वह मानते हैं कि अमेरिका, यूरोपियन यूनियन समेत पश्चिमी देश उनके खिलाफ हैं और जंग में यूक्रेन का साथ दे रहे हैं। कोल्ड वॉर के दौर से ही रूस की यह स्थिति है। इसी तरह आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट तमाम इस्लामिक दहशतगर्द भी पश्चिमी देशों को अपना खुला विरोधी और दुश्मन मानते हैं। ऐसे में इस्लामिक स्टेट ने उस रूस पर भीषण आतंकी हमला क्यों किया, जो खुद भी पश्चिम के खिलाफ रहा है। यह सवाल सभी के जेहन में है। मॉस्को के क्रॉकस सिटी के एक कॉन्सर्ट हॉल में हुए आतंकी हमले में 140 लोगों की दर्दनाक मौत हुई है।
आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट की विचारधारा को समझने वाले जानकार मानते हैं कि रूस भी उसका दुश्मन जैसा ही है। इसकी वजह यह है कि रूस में ईसाई मत को ही मानने वाले लोगों की संख्या अधिक है। इस्लामिक स्टेट पाकिस्तान से लेकर नाइजीरिया तक दुनिया के बड़े हिस्से को सदियों से चली आ रही जंग के तौर पर दो हिस्सों में बांटता है। उसका मानना है कि बीते 1400 सालों से इस्लाम और ईसाईयत के बीच जंग चली आ रही है। इसमें सभी ईसाई बहुल देश अलग मोर्चे पर हैं और इस्लामिक मुल्क अलग हैं। वह मानता है कि मॉस्को भी ईसाइयों के विस्तृत गठबंधन का ही हिस्सा है।
सोवियत संघ का हिस्सा रहे देशों के युवा बने आतंकी
इसके अलावा इस्लामिक स्टेट, अलकायदा समेत तमाम आतंकी संगठन मानते हैं कि ईसाई मत मानने वाले एवं अन्य गैर-इस्लामिक देशों का एक अनकहा गठबंधन है। ऐसे में भारत, रूस समेत तमाम देश इनके टारगेट पर रहे हैं। इस्लामिक स्टेट में तो रूस, भारत, ब्रिटेन, अमेरिका, फ्रांस समेत दुनिया भर से गए लोग आतंकी बने हैं। इस्लामिक स्टेट का ही एक संगठन है- इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रोविंस। इसे ही ISKP कहा जाता है। इसमें बड़ी संख्या में मध्य एशिया के उन देशों के लड़ाके शामिल हैं, जो कभी सोवियत संघ का हिस्सा थे।
चेचेन्या का युद्ध भी है रूस से गुस्से की वजह
इन लड़ाकों को लगता है कि रूस भी इस्लाम के खिलाफ है। ऐसे में उसके खिलाफ भी जिहाद छेड़ना चाहिए। द गार्जियन की एक रिपोर्ट के अनुसार रूस पर हमले की एक वजह यह भी है कि पुतिन सरकार सीरिया में बशर अल असद का समर्थन करती है। असद सरकार को इस्लामिक स्टेट अपने खिलाफ मानता है। 1999 में चेचेन्या में रूस की ओर से लड़ा गया खूनी युद्ध भी इसकी एक वजह है। इसके अलावा अफगानिस्तान में रूस के 1980 में पहुंचने को भी आतंकी संगठन इस्लाम के खिलाफ उठाया कदम मानते हैं।